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गोपाष्टमी

vatsalya
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gopa astmi

गोपाष्टमी यह सन्देश देती है की ब्रह्माण्ड के सब काम चिन्मय भगवत सत्ता से ही हो रहे हैं परन्तु मनुष्य अहंकारवश यह सोचता है कि हमारे बल से ही यह चलता है- वह चलता है l इस भ्रम को दूर करने के लिये ही भगवान दुख और परे
शानी भेजते हैं ताकि मनुष्य सावधान होकर इस अहंकार से छूट जाए l जब वह अपने अहंकार को छोड़ परमात्मा की शरण जाता है तो सारी मुसीबतें दूर होकर उसे परमानंद कि प्राप्त

ि सहज में हो जाती है l

वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा अर्चना की जाती है वह दिन भारत में ‘गोपाष्टमी’ के नाम से मनाया जाता है l जहाँ गाय पाली-पौंसी जाती हैं , उस स्थान को गोवर्धन कहा जाता है l

गोपाष्टमी का इतिहास
गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुडा उत्सव है l गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व् सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक उंगली पर धारण किया था l गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी- अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया की हम लोग ही गोवर्धन को धारण किये हुए हैं l उनके अहम् को दूर करने के लिए भगवान् ने अपनी ऊँगली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा l तब सभीने एक साथ शरणागति की पुकार लगाई और भगवान् ने पर्वत को फिर से थाम लिया l

स्त्रोत : ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2012

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