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सरकार वृन्दावन में बुला क्यूँ नहीं लेती।

vatsalya
vatsalya
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RADH

अरमान मेरे दिल का मिटा क्यूँ नहीं देती,
सरकार वृन्दावन में बुला क्यूँ नहीं लेती।
दीदार भी होता रहे हर वक्त बार बार,
चरणों में अपने हमको बिठा क्यूँ
नहीं लेती॥

श्री वृन्दावन वास मिले,अब
यही हमारी आशा है।
यमुना तट छाँव कुंजन
की जहाँ रसिकों का वासा है॥
सेवा कुञ्ज मनोहर निधि वन, जहाँ इक रस
बारो मासा है।
ललिता किशोर अब यह दिल बस, उस युगल
रूप का प्यासा है॥
मैं तो आई वृन्दावन धाम किशोरी तेरे
चरनन में।
किशोरी तेरे चरनन में, श्री राधे तेरे
चरनन में॥
बृज वृन्दावन की महारानी,
मुक्ति भी यहाँ भरती पानी।
तेरे चरन पड़े चारो धाम, किशोरी तेरे
चरनन में॥

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