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माँ की ममता ♥…..वात्सल्य ..♥ कृष्ण यशोदा से भी सुंदर कहीं मिलता है

vatsalya
vatsalya
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ओ ! रे कन्हाई तुने दधि नाही खाई, ?

बांसुरी की धुन ने मुझे बात ये बतायी
रूठ गयो मोसो काहे, काहे मुंह फेर लियो
बोल दे ओ ! कान्हा देख, माँ ने हाथ जोड़ लियो

तेरी बांसुरी भई, तेरी ही सहोदरी अब
माखन वा से मांग लियो, मन्ने अब ना दोष दियो
शिकन तो तेरे मुख तनिक सौ तो आयी नाही
मन मुस्कात कान्हा , माँ ने ली बलैया जानी

बैठी छाँह कदम के, माँ यो मनुहार करे,
छोटो सो कान्हा मेरो, मैं काहे ना लाड़ करू
जगत दुलार जैसो, माँ को ये दुलार न्यारो
खुद नै लुकाय लियो, शिशु कान्हा प्यार बाढ्यो

कैसो मात, कैसो सुत, निरखत ज्यों जीव जंतु
मन को सम्मोहन में सबही ने भरमाय लियो
आयो रूप धर के ज्यों लीला पै यूँ लीला कीन्ही
बाल रूप सूर भाष्यों , अंखियन में समाय लियो.

रोज रोज मनमानी , कितनी ढिठाई करयो
गोपी संग तोड़ फोड़, मटकिन गिराय दियो
छुप छुप बाट जोहत , गोपी गृह माखन लै
गवाल बाल सबहीं के मुख लपटाय दियो

चोर ये चकारो सारो, करै सब गुहार देखो
मोहनी सी मूरत सो चेहरों बनाय लियो,
देख देख लीला न्यारी , मन में समाय जात
कान्हा ये मुरारी मेरो , माखन चुराय खात

आज दधि खाई नाही, बड़ी है कमाई मेरी
सारी सारी गोपियाँ की आयी है दुहाई तेरी
तेरो मन वाको संग , रम गयो जानू मैं
दीप से पतंगा जैसी प्रीत वा लगाईं आयी

मान ले ओ ! कान्हा तेरो ऐसो उत्पात हियाँ
दिन रात नन्द बाबा सब नै सुनायी कही
कित्ते युग बीत गयो , पर ना पुरानी भई
बाल कृष्ण कान्हा कथा सब ने जुबानी लई

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