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गांधी का एक बन्दर
कल के गाँधी ने तीन बन्दर पाले थे
जो झूठ को न देखते थे न सुनते थे न बोलते थे
अपने को इमान के तराजू पर तोलते थे
आज के गाँधी जी ने एक बन्दर पला है
को सच को न देखता है न सुनता है और न ही वांचता है
अपने मालिक के इसारे पर सिर्फ नाचता है
इसके जीवन में जाने क्या घोटाला हो गया है
यह जब आया था तो लाल था अब पूरा काला हो गया है
माना यह बन्दर खानदानी नहीं है
बन्दर होना तो इसकी मजबूरी है
इसके प्रति हमारी सद्भावना पूरी है
इसका वंश तो सिंहों का है
जो अपनी मान मर्यादा के लिए प्राणों का भी मोल देते हैं
यदि धर्म पर आ जाये तो बेटों को भी तोल देते हैं
शीश कटा कर इतिहास रचा देते हैं
खुद रहें न रहें पर धर्म को बचा लेते हैं
इस बन्दर का तो मान सम्मान स्वाभिमान सब कुछ हो गया है
यह एक विदेशी बंदरिया का मुरीद हो गया है
यह बन्दर अपने मालिक के जीवन में आनन्द भर देता है
और जब चलता है तो कठपुतली को भी मात कर देता है
इससे खुश होकर इसके मालिक ने इसे सबसे बड़ा आशन दिया
यानि की पूरे जंगल का शासन दिया है
यह बफादारी से इतना पोषित हो गया है
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निकम्मा घोषित हो गया है
न जाने कब तक यह खिलबाड़ होता रहेगा
और मेरा देश ऐसे बंदरों को न जाने कब तक ढोता रहेगा
Kavi Umashankar Rahi
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