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आध्यात्म के क्षितिज पर दैदिप्पमान राष्ट्र रत्न दीदी माँ-व्यक्तिव और कृतित्व से साक्षात्कार

vatsalya
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DSC_1760साध्वी ऋतंभरा को यों तो सारा संसार जानता है/एक युवा आध्यात्म के जगत में प्रवेश करतीं है पूज्य महामंडलेश्वर युगपुरुष स्वामी परमानन्द जी की सद्प्रेरणा से और पूरे संसार में पूज्य हो जातीं हैं इसलिए नहीं कि वे एक युवा है नहीं,एक महिला है इसलिए वो भी नहीं आप क्या सोच रहे आध्यात्म जगत से है इसलिए! भाई आप सोच के करीब तो पहुच ही गए पर इन सबसे अलग जो उनकी सोच और अंजाम रहा उसने पूरे जगत में उन्हें वन्दनीय और पूज्यनीय बना दिया/एक अदभुत सोच और सृजन संसार के सामने आया जो अपनेआप में अनूठा तो है ही साथ ही साथ भारत के भविष्य को गढने का अतिसुन्दर प्रत्यन किया जा रहा है जहाँ यह अनूठा कार्य सम्पादित हो रहा है वह पावन भूमि प्रभु श्री कृष्ण की लीला स्थली है प्रभु की लीलाओं से तो सारा संसार अभिभूत है ही ,परन्तु प्रभु  की उन  बाललीलाओं में माँ यशोदा के वात्सल्य की सौंधी-सौंधी सुगंध भी मिश्रित है/यशोदा भाव जीवन्त रहे आधुनिक युग में भी हम माँ यशोदा के दर्शन कर सके इसी भूमि पर परमशक्तिपीठ के द्वारा संचालित वात्सल्य ग्राम स्थापित है जहाँ की अधिष्ठात्री देवी माँ यशोदा हैं/तो हम चर्चा कर रहे थे की पूज्या साध्वी ऋतंभरा जी दीदी से दीदी माँ कब और कैसे बन गई/एक नई परम्परा को जन्म देने वाली साध्वी ऋतंभरा करोड़ों युवाओ के दिल की धड़कन थी राष्ट्र पुरुष मर्यादा पुरषोत्तम भगवन श्री राम की जन्म स्थली अयोध्या के लिए भारतीय जनमानस की सुसुप्त चेतना को झकझोर कर जगाया और आध्यात्मिक और राष्ट्रिय कर्तव्य बोध भी कराया/ आध्यत्म के साथ राष्ट्रीयता के भाव को प्रमुखता से अपने प्रवचनों,कथाओं और उदबोधनों में अभिव्यक्त कर माँ भारती की व्यथा को कथा के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए दशा सुधारने के लिए दिशा प्रदान करने वाली साध्वी ऋतंभरा से कब दीदी माँ हो गई/ निराश्रित बचपन को ममता की गोद और वात्सल्य का आँगन एक स्वाभिमान और कर्मठ नागरिक तैयार करने की भारतीय परंपरा और संस्कृति युक्त वातावरण देने का पुनीत कार्य पूज्या दी माँ जी द्वारा किया जा रहा हैं/प्रकल्प तो इस देश में हजारों-लाखों चल रहे है पर क्या वास्तविकता में जिनके लिए चलाये जा रहे है उसका लाभ या यों कहे वे लाभार्थी हो भी रहें है या यों दान-अनुदान,नाम-यश के लिए संचालित किये जा रहें है/संवेदनाएं इनसे कोसों दूर है ऐसे उदाहरणों से हम-आप रोज ही मिडिया के माध्यम से परिचित है ही/ कहने का आशय केवल यह है कि संवेदना से भरा कोमल ह्रदय ही ममत्व,वात्सल्य और प्रेम की बरसात कर सकेगा, जिसने करीब से देखा हो कहते है खाली गगरी भला कैसे छलक सकती है और गगरी भरती है माँ!माँ के रूप में मनुष्य को प्रभु ने सर्वोत्तम उपहार दिया है वो एक गीत “देखा,नहीं उनको हमने कभी पर उसकी जरुरत क्या होगी,ये माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी…………………./ माँ अपने बच्चे की परवरिश के दौरान ही उसके कोमल ह्रदय में बीजारोपण करती है अच्छेसंस्कार,संवेदनाए,स्नेह,प्रेम,प्यार,धीरता,वीरता,सहनशीलता ,कोमलता और मानवीयता की,जो परिवार के वातावरण के खाद-पानी से सिंचित हो पुष्पित-पल्लवित हो तैयार होता है
पूज्य दी माँ जी का अवतरण लुधियाना जिले के दोराहा में हुआ/पिताश्री कठोर स्वभाव के थे और माँ एकदम विपरीत!संवेदनाओं,स्वाभिमान से परिपूर्ण/परिवार को बहुत बार आर्थिक संकटों से गुजरना पड़ा कई बार घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं रहा,पर स्वाभिमानी माँ ने सिल पर कोयला और इट के टुकरों को पीसकर पड़ोसियों को यह महसूस नहीं होने दिया कि आज उनके घर में भोजन नहीं बना और पडोसी कहीं उनके बच्चों पर दया करने नहीं आ जाये/ मोहल्ले में भिक्षा के लिए आने वाली वृद्धा को १५-२०दिनो में एकबार घर में छुपा लेती और समय निकालकर उसको स्नान कराती,उसके बाल साफ करती,कपडे साफ करती खाने के लिए उसे कुछ बाँधकर सुबह-सुबह घर से विदा कर देती/पूज्य दी माँ जी ने विरासत में अपनी माँ से यह सब पाया/मथुरा-वृन्दावन जब भी आती एक कटोरी अनाज के लिए भजन-संकीर्तन में रत वृद्धों को देख उनका मन व्यथित होजाता था/उन्हें लगता भगवान का भजन केवल इसलिए कि उन्हें अपनी भूख शांत करने के लिए/

दीदी माँ एक दैवीय व्यक्तित्व ही नहीं वरन राष्ट्र प्रेम एवं वात्सल्य से ओतप्रोत एक अद्भुत विचारधारा भी है/ विराट स्नेहमयी वात्सल्य भाव से ओतप्रोत एक ऐसी विचारधारा जिसके निर्मल प्रवाह में से विश्व के समक्ष एक अनुपम व्यवस्था का उदभव हुआ/ ऐसी व्यवस्था जिसके बारे में विश्व के किसी भी समाज सुधारक ने कभी भी नहीं सोचा / समाज में आलोचक तो प्रायः सभी जगह बिखरें हुए दिखाई देते है परन्तु समालोचक होकर समाज में व्याप्त कुव्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने का कार्य कुछ विरले लोग ही कर पाते है सामान्य रूप से भारत के संतों के बारे में एक सीमित सोच है-मठ मंदिरों और आश्रमों में विराजित तपस्वी संतजन, जो समय-समय पर अपने उपदेशों तथा प्रवचनों से जनमानस की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं को शांत करते रहते है परन्तु बहुत कम संत गण हुए जिनके शब्दों में इस भारत भूमि की पीडाए प्रकट हुई है/राम की महिमा तो सबने बहुत ही श्रद्धा भाव से गई है परन्तु कम कथा व्यास हुए जिनके श्रीमुख से श्रीराम के साथ शबरी,केवट,निषादों,वानर और भालुओं के अगाध समर्पण की कथाये प्रवाहित हुई / सदियों से गई जा रही कृष्ण कथाओं में रासलीलाओं से हटकर परम योगी श्री कृष्ण के शौर्यपूर्ण का भी वर्णन कुछ एक कथाकार ही कर पाए और बहुत ही अल्पसंख्या उन संतों की रही जो इन कथायों को राष्ट्र कथा के रूप में स्थापित कर सकें
पूज्या दीदी माँ उन्हीं बिरले संतों में से एक है जिन्होंने अपने गुरुदेव,एक विरक्त परिव्राजकाचार्य युगपुरुष महामंडलेश्वर श्री स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज के आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश में राष्ट्र साधना के पथ पर चलकर विश्व भर के सम्पूर्ण हिन्दू समाज को आध्यात्म के साथ ही प्रखर राष्ट्रवाद से भी जोड़ा /भारत भर के संत समाज में अपनी विनम्रता की गहरी छाप छोड़कर दीदी माँ आज सकी प्रिय है / देशभर के पूज्य धर्माचार्यों एवं संतों का जो स्नेहिल आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ है वह अद्वतीय है / भारत और विश्व के विभिन्न धार्मिक समागमों के अवसरों पर विभिन्न अखाड़ों के आचार्यों एवं सन्यासियों द्वारा एक बहन के रूप में उन्हें जो सम्मान दिया गया वह उनके प्रति समस्त संत समाज के भावपूर्ण स्नेह संबंधों को प्रदर्शित करता है इन दृश्यों की साक्षी रहीं हजारों आँखें आज भी उन भावपूर्ण स्मृतियों का स्मरण कर सजल हो उठती है /

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