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उसको जिसकी आत्मा,स्नेह,प्रेरणा तथा आशीर्वाद सदैव मेरे साथ रहा,उसको जिसका हर स्वर मुझे सदैव प्रगति के पथ की और अग्रसर करता रहा,उसी प्रातः स्मरणीय,सांय वन्दनीय मेरे प्रभु,मेरे आराध्य,मेरे सदगुरू पूज्य दीदी माँ जी के श्री चरणों में सादर समर्पित
एकांत में भावों के आरोह-अवरोह बन
मेरे शब्दों को स्पंदित करते रहे हो तुम
निर्विकार कल्पनाओं की उन्मुक्त उड़ान में मेरे मार्गदर्शक बन
गगन तले संग मेरे विचरते रहे हो तुम
आशाओं की मोतियों से पिरोते हुए लड़ियों को, मृतप्राय मेरी देह में
एक मधुर प्राण संचारित कर मुझमें जान भरते रहें हो तुम
मेरी असमर्थता के बाबजूद अपने ह्रदय सौन्दर्य से
मेरे अंतर्मन को जाने कैसे पल-पल भिगोते रहें हो तुम
मेरी आँखों के दर्पण में होता दरस तुम्हारा
और तुम्हारे नयन सिन्धु में मिलता मुझे किनारा
मृदुल मनोहर पदचापों ने गुरुवर तुम्हारी
मेरे भीतर वो दिया एक इंद्रधनुष्य
ऐसा इंद्रधनुष्य जो अँजुरी में बटोरा नहीं जाता
और बस जाता है आँखों की इत्ती सी कोर में
उम्र भर के लिए
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