vatsalya
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जो देखूँ इनको तो आकर्षित करते है
जो पास बैठती हूँ सम्मोहित करते है
छूने से डरती हूँ रोमांचित करते है
रहती हूँ दूर इनसे मन भ्रमर भेजती है
मनमोहक चरणों की सौरभ मंगवाती है
मन लौट नहीं पाता बरबस लौटाती हूँ
नींद नहीं आती सोने का उपक्रम रचाती हूँ
सानिध्य मिले कैसे,कुछ भी सोच न पाती हूँ
कुछ बन नहीं पड़ता,चरण कमल आपके
ह्रदय में बसाती हूँ
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