vatsalya
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वह कितना महान क्षण था जब शुरू किया
मैंने तुम्हे अपने भीतर महसूसना
वही जीवन का चरम था
मन में कुछ विस्वास जागा
श्रद्धा का आभास जागा
भावना निर्मल बनी तो कर दिया मन ने समर्पण
हाथों से प्रसून अर्पण,हो उठी साकार मेरी साधना
मृदुल चितवन की तूलिका को,भावना की स्याही में डुबोकर
ह्रदय- पृष्ठ पर जो हस्ताक्षर तुमने अंकित किये थे
स्मृतियों की मञ्जूषा में आज भी वे संचित है
पल हर पल पुराने होते ये दिन बीते दृश्यों के साथ,
ऐतिहासिक शिल्पकलाओं दस्तावेजों की तरह अमूल्य होते चले जायेगें
तुम्हारे साथ गुज़ारे थोड़े से सुन्दर,सुख भरे दिन शायद कभी लौटकर नहीं आयेगें
परन्तु मेरे लिए इस जग की “अनमोल धरोहर अवश्य हो जायेगें”
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