Menu
blogid : 4118 postid : 119

जब पादुका तुम्हारी,सांसों का स्पंदन मेरी नस-नस में घोले

vatsalya
vatsalya
  • 123 Posts
  • 98 Comments

111111जब भी कोई झोंका आकर,दुआरे को उड़का जाता है
खड़ी देखती रह जाती हूँ,जाने कैसा नाता है
तिमिर मुक्ति का मार्ग पूछने,दुआर तुम्हारे आई थी
जनम-जनम की अतृप्त प्यास को,भाव शून्य बन लाई थी
अकस्मात पैरों को छूने क्यों और कैसे विवश हुई थी
रोक लेती इस विवशता को तो जनम-जनम कुंठित रह मैं जीते जी मर जाती
धनी हुई जब पादुका तुम्हारी,सांसों का स्पंदन मेरी नस-नस में घोले
जो कुछ होना हुआ,उसे तो मैंने स्वीकार किया
कितनी बार सोचा मांगें जो कुछ मन भाता है
परन्तु भरता वाही पात्र है जिसमें भरने को कुछ रह जाता है
मन मैं हूँ विवश मगर,तुम तो हो बंधन के पार,कहीं फेर पाती मन तुमसे
जीना व्यर्था समझ लेती

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to shiromanisampoornaCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh