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इतिहास गवाह है जिस कांग्रेस को आज़ादी के वक्त ही ख़त्म हो जाना चाहिए वो आज आज़ादी के पैसठ वर्षों तक आक्सीज़न पर जिंदा है और आक्सीजन है उनकी सहयोगी पार्टिया / दुर्भाग्य तो हम भारतियों का है जो गोरे अंग्रेजों से सत्ता काले अंग्रेजों के हाथों में हस्तांतरित हो गई और हम गाते हुए जश्न मानते है ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खडग ,बिना ढाल साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल’ क्या हम परिचित नहीं है अपने इतिहास से हजारों-लाखों वीर शहीदों की कुर्वानियों से?क्या हम परिचित नहीं है अंग्रेजों के अमानवीय अत्याचारों और प्रताडनाओं से?सच तो केवल और केवल एक यही है कि हम लोग स्वार्थ के लबादों से लदे है और इसलिए बटे है मजहबों ,प्रान्तों ,पार्टियों में इसके कारण हमें सब कुछ दिखने के बाबजूद भी न दिखने या सही और गलत का निर्णय लेने का सामर्थ्य हममें नहीं रहा/इसलिए देश और देश की आवाम को चूना लगाने के कार्य में इस दल को महारत हासिल है जब तक अकेले लगा सके तब तक अकेले और जब अकेले लगाने में सामर्थ्यवान नहीं रहे तो अपने ही तरह के कुछ सहयोगियों का कुनबा बना कर ‘ लूटो और राज्य करों ‘ ध्येय वाक्य के साथ यूपीए का गठबंधन बना देश में चारों ओर हाहाकार मचा रखा है /
मंहगाई का मसला तो कितना अधिक संवेदनशील है पर अपने अपने हितों और प्रसिधियों के चलते संवेदनशील दीदी ममता जी भी आइपीअल की विजेता टीम को उपहार बाँटने में लग गई कभी-कभी केंद्र सरकार को गुर्रा देती सचमुच में यदि उन्हें आम जनता का दर्द है तो समर्थन वापिस क्यों नहीं लेती ये हाल दीदी के साथ साथ छुट भाइयों का भी है सब एक मामले में कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है पूरा यूपीए गठबंधन ‘जितना लूट सको लूटो,दोबारा मौका मिले न मिले ‘इसलिए इनकी संवेदनाये अपने तक ही सिमट गई है/ जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है तो वह तो एकदम आम बात हो गई जिसके पंद्रह मंत्री गले तक डूबे हो उन्हें तो एकपल भी सत्ता में रहने का नैतिक अधिकार नहीं बनता / जिस सरकार का एकमात्र उद्देश जितनी ज्यादा हो सके विदेश यात्रा की जाये और देश का धन खर्च करने के साथ साथ बाहर ले भी जाया जाये किन आकड़ों की बात की जाये? अपने आस-पास रोज्मरा होते तमाशे? घटते घटना क्रम? फिर वो चाहे संसद या विधान सभा की हो या चरमराई अर्थ व्यवस्था हो,कानून व्यवस्था हो या धनबल अथवा सत्ता के मद में चूर ड्रेस और एड्रेस का आतंक और तांडव ही क्यों न हो?
देश के नेता ,मंत्री एकदूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए है जनता भीषण कष्ट में है किसी तारनहार के इंतजार में पलक पावडे बिछा बैठी है पर दूर दूर तक कोई उम्मीद की किरण नज़र नहीं आ रही है सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं नेता तो नेता अभिनेता और धार्मिक क्षेत्र के वस्त्र धारी भी अपनी दाल देशभक्ति की आड़ में गलाने में लगे हुए है बस अब तो एक ही सहारा है ऊपर वाला ही कोई चमत्कार दिखा दें /
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