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एक अजन्मी कन्या भ्रूण का अपनी दादी के नाम पत्र

vatsalya
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गतांक से आगे …..
एक नीरव सन्नाटा चारों ओर पसर गया था/कोई कुछ नहीं बोला…….माँ के सिसकने की कुछ आवाज़े जरुर मुझ तक पहुंचती रही /एक नि :स्तब्ध शांति के साथ सब लोग घर पहुंचे थे /दादी,घर पहुँचते ही तुम्हारी कठोर आवाज़ मैंने सुनी थी-‘तीसरी लड़की नहीं चाहिए,गर्भ गिरवा दो ‘/ जिस प्यारी दादी के स्नेह की कल्पना से मैं रोमांचित होती थी,उसी दादी के यह कर्कश स्वर मेरे सुकोमल शरीर में भययुक्त सिरहन पैदा कर रहे थे /मेरी माँ के अतिरिक्त जैसे सारा घर एकमत हो गया था मेरा जन्म रोकने के लिए………..घर का कोना-कोना जैसे सशस्त्र हो गया था मुझ अबोध की हत्या कर देने के लिए……..सिवाय मेरी माँ के /वो सबके सामने रोती गिडगिडाती रही…..जैसे दो बेटियों को पाल रही हूँ तीसरी को भी घर के एक कोने में जगह दे दूगीं /लेकिन गर्भ में उसकी हत्या नहीं होने दूगीं /मेरी माँ को पिता की यह चेतावनी कि- ‘मैं या तुम्हारी तीसरी बेटी,दोनों में से किसी एक को चुन लो’/ मेरे सुकोमल मन को गहरे तक आहत कर गई/मई अन्दर गर्भ में रोती रही-‘पिताजी मै तो आपका ही अंश हूँ न,आप मुझे मरते हुए कैसे देख सकते हो?मुझे यद् है कोई नहीं पसीजा था /रात को मेरी माँ का धैर्य टूट पड़ा था,रातभर जैसे वह मुझसे रो-रोकर लिपटने का प्रयास करती रही /ईश्वर का विचित्र विधान-उसके विवश और छटपटाते हुए ह्रदय तथा मेरे सुकोमल शरीर के बीच मात्र दो अंगुल का अंतर था,परन्तु ना वह मुझे छू सकती थी और ना ही मैं उसकी ममतामयी गोद में छुपकर अपनी जान बचा सकती थी / कितनी sadiyon का sa अंतर था -कोख से गोद तक का /उसकी आँखों से उसके पेट पर गिरते आंसू जैसे मेरे गालों पर गिरते से महसूस होते थे /दादी,मुझे यह भी याद है कि डाँक्टर ने तुमसे पूछा था कि -‘गर्भ कैसे गिरवाना है ?बच्चे को ज़हर देकर या पंखेनुमा चाकू से उसके अंगों को काटकर ?
प्यारी दादी,तुम स्त्री होकर कैसे एक देवी रूपी कन्या की हत्या करवा सकती हो ?मुझे पूरी ८४ लाख yoniyen में भ्रमण करने के बाद मनुष्य जन्म मिलने वाला है /मैं भी ईश्वर की इस अदभुत सृष्टि प्राप्त करना चाहती हूँ /मेरी स्थिति की कल्पना करो दादी……..अन्दर गर्भ के गहरे अंधेरों में जहाँ मैं गठरी के समान बंधी हुई आप सब लोगों की निर्मम बातें सुनती हूँ…………डर के मारे पीली पड़ गई हूँ/थोड़ी सी आहट भी मुझे मृत्यु का निर्मम राग सुनाने लगती है……..एक तेज़ धर वाला चाकू मेरी ओर बढता सा प्रतीत होता है/आप लोगों के सामने हाथ जोड़कर मैं अपने नन्हें से जीवन की भीख भी नहीं सकती/मेरे खर्च की चिंता न करो दादी……..मैं आपसे कुछ नहीं चाहूंगी,कोई इच्छाएं नहीं करुगी,अपनी बहनों के उतरे हुए वस्त्र पहन लुंगी,सबके भोजन के बाद आपके बचे हुए जूठे भोजन से ही अपनी भूख मिटा कर सो जाया करुँगी/भले ही मुझे विधालय न भेजना,मैं घर में ही रहकर विधा adhyyn कर लुंगी/सुनो दादी……….मेरी बात सुनो…………मुझे कुछ याद आ रहा है……जिसे सुनकर शायद तुम मुझे मारने का विचार त्याग दो/माँ तुम्हारे साथ एक दिन एक भागवत कथा को सुनने गई थीं ………….कथा प्रवक्ता की ओजस्वी,तेजस्वी,वात्सल्यमयी और राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत वाणी को मैंने गर्भ के अन्दर सुना था/सचमुच जैसे कल-कल करते हुए …………वात्सल्य की एक गंग धार बह रही हो /कोई एक परम संत परम पूज्या दीदी माँ जी के मुखारविन्द से वह भागवती गंगा प्रवाहित हो रही थी /समस्त सभ्य समाज से कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध उठ खड़े होने के उनके मार्मिक आव्हान को मैंने भी सुना था /लाखों- लाख लोगों से भरी उस कथा को परमपूज्या दीदी माँ जी ने कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध संकल्पित करवाया था………….तुमने भी तो संकल्प लिया था दादी………….आज तुम्हें क्या हो गया है /तुम्हें पूज्या दीदी माँ जी की वह ओजस्वी एवं क्रांतिकारी वाणी क्यों विस्मृत हो रही है ?पुत्र तुम्हारा तर्पण करेगा और तुम्हें स्वर्ग प्राप्त होगा शायद इसी छह में पुत्र की अभिलाषा करती हो………..मेरे दैवीय रूप की गर्भ में हत्या कर तुम कौन सा स्वर्ग प्राप्त कर सकोगी माँ ……………?
स्मरण करो दादी,नवरात्री के पावन दिनों में तुम निराहार रहकर जिस देवी की आराधना करती हो,मैं उसी का रूप हूँ,उसी शक्ति का अंश हूँ जो सम्पूर्ण जगत को चलायमान रखे हुए है /कोख में ही मेरी हत्या करवा देने के बाद क्या तुम उस देवी माँ के सामने खड़ी होकर आराधना कर सकोगी ?क्या उस वात्सल्यमयी माँ से दृष्टि मिला सकोगी ?आंसुओ से भरी आँखें मेरी करुण पुकार को अनुभव करो दादी …………मुझे मत मारो ……….. मुझे जन्मने दो …………तुम्हारे इस उपकार का ऋण मैं अवश्य चूका दूंगी /
एक अजन्मी कन्या

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