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कितने शर्म और दुःख का विषय है/ जहाँ एक ओर देश का बचपन भूख और कुपोषण का शिकार है,वही दूसरी ओर अपने को सुसभ्य मानने वाला समाज न केवल अपने सुख-साधनों पर एशोआराम का जीवन गुज़ार रहे है बल्कि अपने को व्यस्त तथा मस्त रखने के फार्मूले की तहत नित्य नए-नए आयोजन और शो इज़ाद कर रहे है इसके लिए काले धन को सफ़ेद और कमजोर इच्छा शक्ति के लोगो को बिना श्रम तथा रातों-रात धनबान बनाने के मुंगेरीलाल के हसीन स्वप्न दिखा गुमराह कर रहे है सरकार इन पर शिकंजा कसने की बजाये अपने भ्रष्टतंत्र और लूटतंत्र(अर्थात पैसा फैक तमाशा देख की तर्ज पर सब कुछ बिकता है जो भी खरीदना चाहो)के माध्यम से उनकी सेवा में जुटी है/देश की मूलभूत समस्याओं का निराकरण करने की बजाये नागरिकों का इनसे ध्यान हटा नित्य नए-नए आरोप-प्रत्यारोप,अनर्गल बयानबाजी,संसद में हंगामा आदि कार्यो में मशगूल है/
उत्तम शिक्षा,स्वास्थ्य तो बहुत दूर की बात है पेट भर भोजन भी नौनिहालों को नसीब नहीं हो पाता/आंकड़े उपलब्ध है दुर्भाग्य तो केवल और केवल यह है कि इच्छा शक्ति का पुणतया अभाब तो है ही साथ ही साथ हमारी संवेदनाये और इंसानियत भी ख़त्म होती जा रही है तभी हम उनके मुख से निवाला छीन रहे है जो कल का भविष्य है,और हमारा भविष्य एक ओर भूख और कुपोषण का शिकार तो दूसरी ओर अत्याधिक सुख-सुविधा में पला बचपन जो आलसी,प्रमादी और दुर्व्यसनों,कुसंस्कारों से ग्रसित/हम कहाँ जा रहे है,अभी भी नहीं जागे तो कब जागेंगे?
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