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सदगुरू के अवतरण दिवस को समर्पित हमारी भावांजलि……………..

vatsalya
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हमें ठण्ड लग रही है,उत्साह की भी कमी है और आलस्य भी छाया है लेकिन यादों में भी नमी है रोम-रोम पुरानी स्मृतियों से पुलकित हो ह्रदय को एक अजब सी गर्मी मिलने लगी अलाव,वो भी बिन ईंधन,सुलगती रही एक चिंगारी,बिना चमके,बिना आवाज,बिना बुझे कहीं न कहीं मै बस आँखे मूंदे महसूसती रही-विचार से कर्म की उत्पत्ति होती है,कर्म से आदत की और आदत से चरित्र की उत्पत्ति होती है और चरित्र से हमारे प्रारब्ध की उत्पत्ति होती है इसी कर्म संचित घडी के प्रारब्ध से हमारी भावांजलि अवतरण दिवस के महोत्सव में श्री-चरणों को समर्पित ०२ जनवरी २०१२
“हमारे पास हंसी नहीं थी,आपने हमें हंसी दी
थोड़ी सी अपने पास रख,सब हंसी हमें दे दी
हम दिन-रत खिलखिलाने लगे
हमारे पास नींद थी पर सपने नहीं थे
आपने हमें अपने सब सपने बिन मोल दे दिए
अब,हम सपने देखते और मुस्कुराते
मुस्कुराते और सपने देखते
आपके आँचल के वट वृक्ष की छाया में
हम जीवन बगिया की सुगन्धित बयार में
बहे जा रहे वात्सल्य की रसधार में
तर जाने को आपके उपकार बहुत हैं
मन मंदिर में आपके अवतार बहुत हैं”
शिरोमणि,सम्पूर्णा वृन्दावन

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