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हम निश्चित हो कर सोते है अपने और अपने परिवार के पालन पोषण तथा अपनी हर प्रकार से उन्नति-प्रगति और विकास की योजना बनाते तथा कृतित्व में लगे रहते है/ पर्व-त्यौहार और अपने,परिवार,मित्रों और रिश्तेदारों के जन्मदिवस,विवाहदिवस इत्यादि में भरपूर आनंद मानते है पर क्या कभी हमने उनके लिए चिंतन और चिंता की है जिनकी बदोलत हम सुरक्षित और निश्चिन्त हैं/देश की सीमाए सदैव उनसे सुरक्षित होती हैं जो अपने घर-दुआर,परिवार से दूर तपते रेगिस्तान,बर्फीले चट्टानों और निर्जन माँ भारतीय की भूमि पर चोकसी करते हुए अपने देश पर शहीद हो जाते है और अपने पीछे छोड़ जाते है बुड़ें माता-पिता अपनी युवा पत्नी और नन्हां सा उसका वारिस/ १५ अगस्त और २६ जनवरी की तरह हमारा इक और राष्ट्रिय पर्व है जिसे हम रक्षा बंधन के रूप में मानते है जिसमें रक्षा सूत्र हम उसे बंधते है जो हमारी रक्षा करते है हमारी परंपरा अनुसार बहन भाई को,ब्रह्मण हमें रक्षा सूत्र बंधते हैं/ भारतीय इतिहास साक्षी है समय पड़ने पर राजा से लेकर साधारण जन ने भी इस सूत्र का मान रखा है/
स्वतंत्र भारत में जन्मने के कारण देश की वीरताओं की गाथाओं को सुन-सुनकर बचपन और युवा अवस्था बीती/ माता-पिता और पूर्वजों के पुन्य प्रताप से सदगुरु प्राप्त हुए/ कारगिल युध्य के दौरान सैनकों के बारे में देखने और जानने का अवसर मिला मान में इच्छा प्रबल हुई उनकी कलाईयों पर रक्षा सूत्र बाँधे जाये और देश की ओर से उनके प्रति क्रत्घ्यता व्यक्त की जाये उन्हें हम बताएं की पूरा राष्ट्र तुम्हारे साथ हैं मेरी सदगुरु पूज्य दी माँ जी कहा करती है जिन संकल्पों में कोई विकल्प नहीं होते वो पूरे जरुर होते है/बस फिर क्या था गुरुदेव की कृपा का फल है की तब से अब तक रक्षा बंधन अपने वीर जांबाजों के साथ manane का पुनीत अवसर मिल रहा हैं/
इस वर्ष १३ अगस्त को भारत-चीन सीमा के जवानों की कलाईयों पर आप सब की ओर से रक्षा सूत्र बाँधने का सौभाग्य हम सब को मिलेगा और यह पुनीत संकल्प पूरा होगा परम पूज्य दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा जी के पावन पाथेय में परम शक्तिपीठ,वात्सल्य ग्राम के सौजन्य से -शिरोमणि संपूर्ण
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