ब्रह्मचारिणी शिरोमणि परम पूज्य दीदी माँ जी की शिष्या हैं यह परम पूज्य दीदी माँ जी का स्नेह व् आशीर्वाद ही है कि वे वात्सल्य ग्राम की विभिन्न सेवाकार्यों के साथ ही परम शक्ति पीठ के संगठन का कार्य भी देख रही हैं | दीदी माँ जी चाहे परिसर में हों या न हों वे पूर्ण निष्ठां व् समर्पण के साथ अपने कार्य में तल्लीन रहती हैं | उनकी जीवटता और परम पूज्य दीदी माँ जी के प्रति कुछ कर जाने की ललक हम सब को प्रेरणा देती है | मैंने जब ब्रह्मचारिणी शिरोमणि जी को पहली बार देखा तो मेरे मन में जो भाव आये उन्हें मैं ब्रह्मचारिणी शिरोमणि जी की बड़ी मनुहार के के बाद जागरण जंक्सन पर पद्य के रूप में प्रस्तुत कर रही हूँ |
उर्मिल
मेरी प्यारी मणि
अध्यात्म के क्षेत्र में मैं थी खड़ी वहीँ मिली मुझे छोटी सी मणि , यह तो शायद थी हीरे की कणी कुदरत ने इसे हांथों से तराशा है | तभी न मिली इसे कभी निराशा है | यह तो गुलदस्ता है फूलों का | तभी तो अपनाती है मार्ग उसूलों का | साध्वी रूप में अवतरित यह आत्मा महान है | दीदी माँ की भी तो यह प्यारी सी जान है| सभी के दिलों से आत्मा में समा जाती है | सभी के दिलों में अपनत्व यह पाती है | प्रभु तो इसके रोम-रोम में समाया है | यह सुचिन्ह तो इसके चेहरे से नजर आया है | यह मणि मुझे बड़ी प्यारी है | क्योंकि यह मेरी बेटी निराली है | ईश इसे सदा दुःख के साये से दूर रखें | अगर हो सके तो रोशन चादर में इसे समेट रखे | सदा सलामत रहे मेरी मणि प्यारी | यह वात्सल्य की कणिका है बड़ी न्यारी |
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