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क्या तीर्थों में bhagvan की पूजा पैसों की सेवा से ही होती है?

vatsalya
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भारत में एकता में अनेकता के दर्शन सहजता से हो जाते है जितने भी धार्मिक तीर्थ है वहां प्रतिदिन हजारों की तादात में श्रद्धालु जन पहुचते है तीर्थ के प्रति आदर भाव लेकर जाते है/बहुत बार लोगों ने रोष व्यक्त किया उन स्थलों पर होने वाले दुर्व्यवहार के प्रति/हम लोग आमिर खान के उस विज्ञापन से भी बखूबी परिचित है जिसमें ताजमहल देखने आने वाले विदेशी पर्यटक के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और आमिर उन्हें समझाइश देते हुए देश प्रेम और हमारें राष्ट्रिय कर्तव्य का बोध कराते हैं/मुझे वृन्दावन की पावन धरा पर परम पूज्या सदगुरू के श्री चरणों में जीवन की कुछ सांसो को लेने का अवसर मिल रहा है इसलिए कभी-कभी कुछ अवसर ऐसे भी आ जाते है जब उन परम वन्दनीय सुधीजनों के साथ भगवान श्री कृष्ण की लीला और क्रीडा स्थलों के दर्शनों और पूजा का अवसर सहजता से और बार-बार प्राप्त होता है,परन्तु यह देख कर बेहद शर्म महसूस होती है जब मंदिर और तीर्थों में बैठे पण्डे और पुजारी श्रद्धाभाव को चाडोत्री से तौलते है ऐसा द्र्ष गोकुल,बरसना, नंदगोव,गोवर्धन सभी जगह बड़ी आसानी से देखने मिलता है/ आप चाडोत्री अच्छी चड़ा रहे है तो
भगवान का झूला आपके साथ आया प्रत्तेक सदस्य झुलायेगा वर्ना क्या मजाल झूले की डोरी को
आप हाथ भी लगा लें और अगर हाथ लगा दिया तो पंडा-पुजारी की जो झिड़की पड़ेगी कि पूजा का
भुत सर से गायब क्या छूमंतर हो जायेगा/
निसंदेह शर्म और लज्जा का विषय है आध्यात्म को पुष्ट करने वाले हमारे यह तीर्थ जहाँ व्यक्ति स्वयम अपने सामर्थ्य से कही अधिक धन और द्रव्य समर्पित करते है वहाँ इस प्रकार के द्रश्य आस्था
और श्रद्धा पर चोट करते है/

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