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दीदी माँ अपने आचँल और आगंन की छाँव देती

vatsalya
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अर्श से एक प्रकाश पुंज धरती की ओर आया
वह धरा पर आकर दीदी माँ ऋतंभरा कहलाया/,
वह ज्ञान,त्याग व् वात्सल्य की प्रतिमा महान है/
तभी तो धरा से अर्श तक गूंजा उनका नाम है/
गरीबों,बेसहारों का वह दर्द सुनती हैं/
उनकी परेशानियों को अनुभूत कर समाधान करती है/
स्रष्टि का कोई कोना एसा न रहा होगा ,
जहाँ माँ आपका नाम न गूंजा होगा/
वात्सल्य उनकी आत्मा में समाया है,
मानों एक नन्हें का दिल उन्होंनें पाया है/
वात्सल्य और ममता की मूरत ने एक ग्राम बसाया हैं/
उसका नाम वात्सल्य ग्राम कहलाया है./
माँ प्रण लेकर उसे पूरा भी करना जानती है ,
तभी तो भ्रूण-हत्या बंद करो पताका फहराती है/
माँ निराश्रितों की मसीहा रूपी नाव है/
हम सब की तो वह bhagvan है./
धरती पर तो इश अवतरित होता हैं,
और वह दीदी माँ जी के रूप में प्रगट है./
अपने आचंल की छाँव में हम-सब को समेटे
राष्ट्रिय कर्तव्य -बोध कराते पहचान देती /
दीदी माँ अपने आचँल और आगंन की छाँव देती/

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