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पूरा संसार भलिभाती परिचित हैं कि माँ भारती की व्यथा को कथा के माध्यम से समाज के सामने रखना और दशा सुधारने की दिशा प्रदान कर रही हैं पूज्य दीदीमाँ साध्वी ऋतंभरा जी,परमशाक्तिपीठ,वात्सल्य ग्राम के माध्यम से वात्सल्य परिवार की अवधारणा के साथ आदर्श नागरिक तैयार करने के पावन और पुनीत साधना में तल्लीन हैं /क्योकि माँ स्रास्त्री के प्रत्येक जीव को इश्वर की अनमोल देन है समस्त जीवों में एक मानव शिशु ही एसा है जिसे विकसित होने में सबसे अधिक समय लगता है/माँ ही अपने स्नेह एवं ममता की छाया में उसके व्यक्तित्व का विकास कर उसे पूर्ण मानव बनाती है /एक माँ के ह्रदय के द्वारा ही ईश्वर की सर्वव्यापकता का दर्शन किया जा सकता है/प्रत्येक स्त्री के ह्रदय में यशोदा भाव व्याप्त है/आवश्कता है केवल उसे जगाने की ताकि वह उनकी माँ हो सके जिन्हें किसी विवशता के कारण अपनी जननी की गोद से वंचित होना पड़ा है/ प्रति वर्ष होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के कारण बहुत से अबोध,मासूम,बालक-बालिकाएं माता- पिता के स्नेह से वंचित हो जाते हैं/ बहुत से नवजात शिशु जन्म लेते ही किन्हीं कारणों से मातरसुख से वंचित हो कर अनाथ जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं तथा बिना किसी दोष के ही दंड के भागी बन जाते हैं/ ऐसे मासूम,अनाथालयों अथवा अन्य विषमताओं में पलकर दिशाहीन हो जाते तथा विभिन्न असामाजिक कार्यों जेसे भीख,चोरी,आतंकवाद आदि में लिप्त हो जाते हैं/
भारती संस्कृति में अनाथालय,नारी निकेतन और वृद्वा आश्रम जेसी व्यवस्थों के लिए कोई स्थान नहीं है/रघुनाथ और विश्वनाथ के एस देश में कोई अनाथ हो भी केसे सकता है?मनुष्य रूप में अवतरण हेतु इश्वर को भी अपनी कोख में धारण करने वाली स्त्री यदि आश्रय के लिए भटके तो यह भारतीय संस्कृति का अपमान नहीं तो क्या है?पूज्य दीदी माँ का मानना है की किसी निराआश्रित युवा स्त्री के ह्रदय में यशोदा भाव जाग्रत कर उसे नवजात निराआश्रित शिशु देने से शिशु को माँ की ममतामयी गोद मिल जाती है और उस स्त्री को जीवन जीने का उदेद्श माँ बनकर ही स्त्री पूर्णता को प्राप्त होती है/पितरों को भी तर्पण देने वाला भारतीय यदि वृद्वा आश्रम बनाता है तो यह भारतीय संस्कृति पर कलंक है/भौतिकतावाद से ग्रस्त समाज मानवता को भूलकर अपने घर के वृद्धजनों को वृद्वाआश्रमों में पहुंचा कर केवल पाप का ही भागी नहीं बन रहा बल्कि इंसानियत के भी खिलाफ हैसाथ ही इन वृद्वों के जीवन में अकेलेपन की भयानक पीड़ा को भी भररहा है/एक नवपरिवर को ऐसी वृद्वाअवस्था का संरक्षण मिलना एक वरदान के समान ही है क्योंकि इनके जीवन के अमूल्य अनुभव पुरे परिवार के लिए लाभकारी सिद्व होंगें साथ ही निराआश्रित वृद्वाअवस्था को भी अकेलेपन के अभिशाप से मुक्ति मिलेगी/
जाग्रत, सशक्त व् स्वाभिमानी स्त्री ही किसी राष्ट्र को स्वाभिमानी,वीर एवं जाग्रत नागरिक दे सकती है/वात्सल्य ग्राम में माँ की परवरिश और नानी के दुलार से संस्कारित शिशु नवोवर्ष के पश्चात् आवासीय विधालयमें आचार्य/आद्यापक के अनुशासन में कुंदन बनकर स्वावलंबी एवं समर्पित आदर्श नागरिक के दायित्व का निर्वाह कर सके पूज्य दीदीमाँ जी के वात्सल्य-सानिध्य में भारत का भविष्य वात्सल्य ग्राम वृन्दावन के पावन आँगन और पूज्य दीमाँ जीके आँचल में पलरहा हैं/
शिरोमणि सम्पूर्णा वात्सल्य
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