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पूरब की पवित्रता और पश्चिम की सुअचता

vatsalya
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कई सदियों से भारत की अध्यात्मिक शक्तियां सरे विश्व की जिज्ञासा का विषय रही हैं / आज भी आपको ऐसे हजारों जिज्ञासु विदेशी मिलेगें जो सब कुछ पा लेने के बाद भी भारत के तीर्थों और मठ-मंदिरों में शांति की खोज कर रहे हैं /सुख और सम्रधि के शिखरों को चूम लेने के बाद भी कहीं ना कहीं उनका अंतर्मन सूना पड़ा /भले ही विकसित हो चुके जगत से हम ५० वर्ष पीछे चल रहे हों फिर भी स्नेह और प्रेम से बना हमारा सामाजिक ताना-बाना उन्हें कौतुहल से भर देता हैं /भौतिकवाद से जकड़ा विदेशी जीवन हरेक चीज का भाव करता हैं और इसके विपरीत हम भावों को अपने अन्दर जीते हैं /वहाँ रक्त के सम्बन्धी भी एक दूसरे को नहीं संभाल पा रहे हैं और यहाँ हम मार्ग पर छोड़ दिए नन्हें शिशु को भी भाव संबंधों के वशीभूत होकर अपने ममतामयी आँचल में समेट लेते हैं /चाहे हम अभी पिछड़े ही क्यों न हों / चाहे हम विज्ञान पर अपनी पकड़ को पश्चिम की तुलना में बहुत मजबूत न कर पाए हों फिर भी हमारे नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य अभी जीवित हैं /पूरब के इन आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन मूल्यों और पश्चिम की वैज्ञानिक दक्षता का मिलाप इस धरती को स्वर्ग बना सकता हैं /पूरब और पश्चिम का यह मेल सारी मानवता को सुख और शांति का एक नया सूत्र दे सकता है /
अभी पिचले दिनों यूरोप के महासागर में एक विशाल जलयान पर भारत के भक्तों ने श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया / वात्सल्य ग्राम के सहयोगार्थ्र आयोजित इस आयोजन की व्यासपीठ से संबोधित करते हुए तथा यूरोप के अनेक नगरों के दर्शनीय एस्थलों पर भ्रमर्ड करते हुए एवं वहाँ के नागरिकों से भेंट करते हुए मैनें यूरोपीय संस्कृति को अनुभव किया / वहाँ बहुत कुछ अशोभनीय हैं लेकिन कहीं न कहीं ऐसा कुछ अच्छा भी हैं जिसे हम अपना सकते हैं / वहाँ यूरोप के लोग उन्मुक्त प्रेम करते हैं जहाँ दिल करता है वहीँ प्रेम में निमग्न हो जाते हैं /उनकी अपनी संस्कृति है उनके अपने संस्कार है / विचार किया जा सकता है कि यदि दो लोग सहमत है तो वह अशोभनीय नहीं है लेकिन एक सहमत नहीं है दूसरा जबरदस्ती उसके पीछे लगा है तो ये अशोभनीय है जो हमारे देश में बार बार देखने को मिलता है / हमारे यहाँ हम जब लोग यात्रा करते हैं जिसमें प्रय्हा ऐसा होता है कि आप बस में खड़े खड़े बार बार पीछे वाले से हटने कि कोशिश कर रहे हैं और वो पीछे वाला अपने शरीर को आपके शरीर ke साथ जोड़ने का प्रतन्य कर रहा है यह अशोभनीय है , यह बलात्कार है जो अच्छा नहीं है /
दीवारों पर जो गन्दी भाषा लिखी जाती है वो भीतर का दमित है जो दीवारों पर उमड़ उमड़ कर आ रहा है वो हमारे चित्त की दशा बता रहा है / आप बाहर में माला जपते दिख रहे हो लेकिन भीतर तो वासना का शोर है और वासना में रमार्ड करने वाला ही कहीं भीतर में तृप्त और शांत परमात्मा में हो सकता है इसलिए प्रभाव आपकी शरीर की दशा का नहीं है प्रभाव आपके चित्त की दशा का है / जो भारत में हो रहा है वाही यूरोप में भी दिखलाई दे सकता है लेकिन अगर कहीं शुभ दिखलाई दे तो उसे चुना जा सकता है / अगर आपके पास द्रस्ती है तो कंकड़ पत्थरों से भरी कोयले की खान में भी आपको हीरा मिल जाएगा अगर आपके पास द्रस्ती नहीं है तो कहीं भी चले जाये कंकड़ पत्थर ही दिखलाई देंगें /
apane आसपास जो कुछ भी हो रहा है यदि उसके प्रति हम संवेदनशील हो जाएँगे तो अदभुत सुख अदभुत आनंद परमानन्द मिलेगा और इसी को जियो / स्वच्छता तभी बाहर आती है जब भीतर होती हैं अगर भीतर कचरा भरा है तो बाहर भी कचरा कचरा हो जाएंगा प्रयतन करो न भीतर कचरा रहे न आसपास कचरा रहे / स्वच्छता से कहानी शुरू हो और पवित्रता तक पहुँच जाये /यही था भारत और यही थी भारत की द्रस्ष्टि जो हमें सरे विश्व को देनी है इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि बहुत संवेदन्शीलता प्रेम प्यार के हीरे मोती दोनों हाथ लुटाओ जिसका पकड़ो हाथ साथियों उसका साथ निभाओ /
दीदी माँ ऋतंभरा

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