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जनतंत्र की राह पर आगे बर रहे देश का लोकाचार दिनोदिन पराभव की ओर जा रहा हैं / चरित्र और ईमानदारी जेसे गंभीर विषयों पर नेताओ दुयारा दिए जाने वाले रटे रटाए भासर उनके स्वयं के जीवन में बहुत कम चरिताथय दिखाई देते हैं / धीरे धीरे आम जन भी भ्रसटाचार की उस दोर्ड में शामिल होता जा रहा हैं / देश की जनता की गारी कमाई का खरबों रूपया स्वविस बैंकों में जमा हैं और उसे वापिस लाने वालों की मांग करने वालों ,भ्रस्टाचार को खत्म करने वाले अभियान का शुभारंभ करने वालों के विरुद्ध राजनेतिक घेरा बंदी की जा रही हैं / देश का सही राह पर लाने की राजनेतिक उमिंदे धूमिल हो जाने के बाद अब आध्यत्मिक जगत से जुडी कुछ शक्तियां अगर भ्रसटाचार के खात्मे के लिए सड़को पर उतरने की त्ययारी में हैं तो इससे किसे तकलीफ हो रही हैं?आम जनता तो उनकी सभाओं में उमड़कर उनके अभियान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखा रही लेकिन भारत का एक राजनेतिक धढ़ा इस जन अभियान को कुचल देने की मानसिकता में दिखाई देता हैं / उन विदेशी बैंकों में किसका रूपया जमा हैं यह देश की जनता जानती हैं / संशयों के अंधियारे से आकाश काला जरुर हैं लेकिन देर सबेर प्रभात होगी ही / देश का इतिहास चीख चीख कर कहता हैं कि भ्रष्ट और अत्याचारी व्यवस्थायं बहुत समय तक नहीं टिक सकीं / उनेहं जनबल के सामने धुल-धूसरित हो जाना पड़ा हैं / समय रहते तथाकथित सत्ताधीशों को अपना आत्मावलोकन करके वास्तविक लोकाचार को अपना ही लेना चाहिए अथवा फिर इतिहास के काले पन्नों के रूप में दर्ज हो जाने के लिए तयार हो जाना चाहिए / भ्रसटाचार के दलदल से निकलने का एक ही तरीका हैं और वह हैं देश कि जनता कि पीरा को अपने अन्दर अनुभव करना,अभावों में जी रहे करोरों लोगों को अपने गले लगाना / उनके दर्द को अपने भीतर महसूस करके ही आप अपने भीतर करुना को जगा सकते हैं और करुना कि इसी प्रसव पीरा में से आपके भीतर आदर्श लोकाचार का जन्म होगा /
दीदी माँ ऋतंभरा
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